देहरादून, राज्य की सरकार भले ही अधिकारियों कर्मचारियों की सुख सुविधाओं को देते हुए तबादलों की व्यवस्था बनाती है लेकिन राज्य आबकारी विभाग सरकार के बनाए नियमो के विपरीत ही काम कर रहा है।एक बार फिर आबकारी विभाग में विवाद में शुरू हो गए है।। उत्तराखंड आबकारी विभाग के अपने कायदे कानून हैं जो विशेष इलाके से चलते हैं। दरअसल शासन के द्वारा तबादला सत्र जून माह से 31जुलाई और फिर 31 अगस्त तक तबादलों की तारीख बड़ा दी थी, उसके बाद भी यदि किसी को तबादलों की जरूरत होगी तो मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी कमेटी धारा 27 A के तहत तबादले कर सकेगी ।।लेकिन आबकारी विभाग के सामने मानो जैसे पूरे सिस्टम का कोई वजूद ही ना हो।। आबकारी विभाग के सिपाहियों की तकलीफ आबकारी मुख्यालय तक समय से नहीं पहुंच पाई, जिसके चलते अब तबादला सत्र समाप्त होने के बाद विभाग को सिपाहियों के तबादले की याद आई।। एकाएक अधिकारियों को सिपाहियों की बीमारी और खुद की प्रशासनिक जरूरत भी याद आ गई। अब सवाल उठता है कि क्या कर्मचारियों की तबियत से तबादला सत्र के दौरान अधिकारियों को अवगत नहीं कराया गया या अचानक तबियत बिगड़ने पर कर्मचारियों को तबादलों का लाभ दिया गया।
सरकार को चुनौती देने वाले यह आदेश बताते हैं कि आबकारी महकमा शासन और सरकार के आदेश और निर्देश से नहीं बल्कि अपनी सुविधा के अनुसार चलता है।। जबकि कई ऐसे मुलाजिम हैं जो लंबे समय से तबादलों का इंतजार कर रहे हैं।। लेकिन मजाल है कि उनकी और किसी की नजर भी पड़ी हो।
सरकार के आदेशों को आबकारी विभाग के अधिकारियों की चुनौती, तबादला सत्र समाप्ति के बाद भी किए जा रहे तबादले..
