देहरादून, यूं तो सूचना एवं लोक संपर्क विभाग का मुख्य उद्देश्य राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और नीतियों को आमजन तक पहुंचाना है, ताकि जनता को सरकार द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जानकारी समय पर मिले और वे उनका लाभ उठा सकें। विभाग की ओर से इस दिशा में लगातार प्रयास भी किए जा रहे हैं—चाहे वह प्रेस विज्ञापन के माध्यम से सूचनाओं का प्रसार हो, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सक्रियता हो या जनसंपर्क अभियानों के जरिए गांव-गांव तक पहुंचने की पहल।
लेकिन हाल के दिनों में विभाग के प्रयासों पर कथित तौर पर कुछ “खबर नवीस लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर अत्यधिक धनराशि खर्च की जा रही है, जबकि हकीकत यह है कि सूचना विभाग की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी व्यवस्था के तहत संचालित होती है।
सूत्रों के अनुसार, विभाग के पास योजनाओं के प्रचार के लिए एक निश्चित बजट निर्धारित होता है, जो विभिन्न माध्यमों—प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और आउटडोर विज्ञापनों—में समान रूप से विभाजित किया जाता है। यह बजट राज्य वित्त विभाग की स्वीकृति से पारित होता है और प्रत्येक भुगतान लेखा परीक्षण (audit) से गुजरता है। बावजूद इसके, कुछ तत्व बिना तथ्यों की जांच किए विभाग की छवि धूमिल करने की कोशिशों में जुटे हैं। विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि ऐसे निराधार आरोपों से न केवल उनकी कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगते हैं, बल्कि ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों और कर्मचारियों का मनोबल भी टूटता है। उनका मानना है कि सरकार के प्रयासों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने के बजाय समाज को यह समझना चाहिए कि जनसंपर्क किसी भी शासन व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा होता है। जानकारों का कहना है कि आज के डिजिटल युग में सूचना का त्वरित प्रसार आवश्यक है, और अगर सरकार अपने कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचा रही है तो यह लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है। वहीं, विभाग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया है कि पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिए सभी योजनाओं का रिकॉर्ड सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध है।ऐसे में यह आवश्यक है कि सरकार और मीडिया दोनों मिलकर जनहित की भावना से काम करें, ताकि सही सूचनाएं जनता तक पहुंचे और राज्य के विकास में सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
