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स्वास्थ्य विभाग का यह कैसा अलर्ट, थराली में आपदा दून में स्वागत समारोह….

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देहरादून।
उत्तराखंड इस समय आपदा की मार झेल रहा है। थराली से लेकर चमोली तक हालात बेहद भयावह हैं। बादल फटने और मूसलाधार बारिश से लोग अपने घर-बार, संपत्ति और अपनों को खो चुके हैं। सरकार ने पूरे स्वास्थ्य तंत्र को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश जारी किए हैं, ताकि किसी भी आपात स्थिति में पीड़ितों को तुरंत चिकित्सकीय सुविधा मिल सके। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन हालातों के बीच राज्य के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज–हॉस्पिटल में नज़ारा बिल्कुल अलग रहा। यहां हाल ही में प्रभारी प्राचार्य से प्राचार्य बनीं डॉ. गीता जैन का भव्य स्वागत समारोह आयोजित किया गया।

समारोह में जिस तरह का उत्साह और दिखावा किया गया, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जब पूरा राज्य आपदा की पीड़ा में कराह रहा है, तब स्वास्थ्य महकमे के सबसे बड़े संस्थान में इस तरह की ताजपोशी क्या उचित है? लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर यह स्वास्थ्य विभाग का संवेदनहीन रवैया नहीं तो और क्या है।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं सभी जिलों के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को आपातकालीन हालात से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार रहने के आदेश दिए हैं। ऐसे में राजधानी के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान का ध्यान पीड़ितों की मदद पर केंद्रित होने के बजाय एक “प्राचार्य स्वागत समारोह” में बंटा रहना गंभीर सवाल खड़े करता है।

थराली और आसपास के इलाकों में जिन परिवारों के सिर से छत तक छिन गई है, जो अपनों को खोने के बाद असहाय स्थिति में हैं, उनके लिए यह खबर किसी नमक छिड़कने से कम नहीं है। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या आपदा पीड़ितों की तकलीफ से बड़ा कोई “अधिकारिक जश्न” हो सकता है?

इस पूरे घटनाक्रम ने स्वास्थ्य तंत्र की प्राथमिकताओं पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या वास्तव में विभागीय अधिकारियों और कॉलेज प्रबंधन की प्राथमिकता पीड़ितों को राहत देना है या फिर सत्ता और पद की चमक-दमक में डूबना?

राज्य की जनता उम्मीद कर रही है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी और स्वास्थ्य सेवाओं को आपदा पीड़ितों की मदद में समर्पित करेगी। क्योंकि आज उत्तराखंड को अस्पतालों में सजावट और समारोहों की नहीं, बल्कि हर घायल और पीड़ित तक पहुंचने वाली सेवाओं की जरूरत है। यह पूरा घटनाक्रम हमें सोचने पर मजबूर करता है कि यह कदम आपदा के ज़ख्म पर मरहम है या नमक।